धान, चावल, अन्नमु और भात
धान, चावल, अन्नमु और भात
डॉ. रामवृक्ष सिंह
भारत ग्लोब के उस हिस्से का देश है, जहाँ
वर्ष-पर्यन्त (दक्षिण में) अथवा वर्ष के चार-पाँच महीने (उत्तर में) इतनी गरमी और
उमस रहती है कि उसमें धान की पर्याप्त खेती हो पाती है। धान हमारी संस्कृति के
सबसे प्राचीन खाद्यान्नों में से एक है। सिन्धु घाटी सभ्यता के मृद्भाण्डों में
चावल मिला है। इससे सिद्ध होता है कि उस समय चावल यहाँ के मूल निवासियों के भोजन
का अभिन्न अंग हुआ करता है। हमारे धार्मिक अनुष्ठानों, जीवन से जुड़े विभिन्न
संस्कारों आदि में चावल का प्रयोग कभी अक्षत के रूप में तो कभी दूल्हा-दुल्हन
द्वारा अंजुरी भरने या खोंचा बाँधने के लिए किया जाता है। चावल की इतनी गहन
सांस्कृतिक सम्पृक्ति यह सिद्ध करती है कि भारत की कृषि-बहुला जीवनधारा में इसका बहुत-ही
महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। दक्षिण भारत की जलवायु धान उगाने के लिए वर्षपर्यन्त
बहुत अनुकूल रहती है। इसलिए वहाँ धान की तीन-तीन फसलें भी ले ली जाती हैं। इसके
विपरीत उत्तर में यह केवल खरीफ़ यानी बरसात के उमस भरे मौसम की फसल है। दक्षिण का
प्रधान खाद्यान्न धान है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि आन्ध्र प्रदेश आदि दक्षिणी
राज्यों में चावल को ही ‘अन्नमु’ यानी अन्न कहा जाता है। वहाँ के बहुत-से लोग व्रत वाले दिन
चावल छोड़ बाकी सब कुछ खाते हैं। यहाँ तक कि वे गेहूँ की रोटी भी खा लेते हैं और
कहते हैं कि आज हमारा व्रत है, इसलिए हम अन्नमु नहीं खाएँगे।
हमारे सामान्य भाषा-प्रयोक्ता ही नहीं, बल्कि अच्छे-अच्छे
लेखक भी लोक-सम्पृक्ति के अभाववश प्रायः शब्दों का त्रुटिपूर्ण उपयोग करते हैं।
उदाहरण के लिए ‘धान’ और ‘चावल’ को ही ले लें। हममें से अधिकतर लोग ‘चावल की खेती’ की बात करते
हैं। यह कहना ठीक वैसे ही है, जैसे ‘आटे की खेती’ की बात करना। वस्तुत ‘धान’ वह अनाज है, जिसकी कुटाई
करके, भूसी हटाने के बाद उसमें से ‘चावल’ निकलता है। धान को खाया नहीं जा सकता, जबकि चावल को उगाया
नहीं जा सकता। धान को बो दें तो उसमें से पौधा अंकुरित हो जाएगा, किन्तु चावल को
बोने पर पौधा नहीं निकलेगा। अंग्रेजी में धान को ‘पैडी’ और चावल को ‘राइस’ कहा जाता है।
हिन्दी और इतर भारतीय भाषाएं इससे एक क़दम और आगे हैं। अपने यहाँ पके हुए चावल को ‘भात’ कहा जाता है।
जिन राज्यों (जैसे बंगाल) में ‘भात’ ही मुख्य भोजन यानी स्टेपल डाइट है, वहाँ भोजन को ‘भात’ कहते हैं। यही
स्थिति दक्षिण में है जहाँ भोजन मात्र को ‘अन्नमु’ कहा जाता है। वैसे पूर्वोत्तर,
बंगाल से लेकर गुजरात तक, लोक-जीवन में ‘भात’ शब्द ही अधिक प्रचलित है।
केवल पढ़े-लिखे लोग पके चावल को या तो ‘चावल’ ही कहते हैं या ‘राइस’। ‘भात’ शब्द की
लोक-व्याप्ति और सांस्कृतिक पैठ इससे भी पता चलती है कि कन्याओं के विवाह में उनके
मामा जो भोज कराते हैं, उसे उत्तर भारत में ‘भात देना’ या ‘भात भरना’ कहा जाता है।
विवाह के पहले बारात की दावत को ‘भत्तवान’ कहते हैं। जाति-बहिष्कृत होने पर प्रभावित पक्ष यदि अपने
समुदाय को अच्छी तरह भोजन करा देता है, तो उसे वापस समाज में शामिल कर लिया जाता
है। यह भोज भी ‘भात’ कहलाता है। इतनी वैविध्यपूर्ण अवधारणा की अभिव्यक्ति ‘चावल’ से कैसे हो
सकती है?
कहते हैं कि अंग्रेजी सेना में जवानों को नियमित
वेतन के साथ-साथ भोजन के लिए अलग से एक राशि दी जाती थी, जो मुख्यतया ‘भात’ खाने के लिए
होती थी। ‘भात’ के लिए विशेष रूप से दी जानेवाली इस राशि को ‘भत्ता’ कहा गया, जो
आज भी प्रचलित है, किन्तु अलग-अलग मदों के लिए, जैसे वाहन भत्ता, महँगाई भत्ता,
नगर प्रतिपूरक भत्ता, शिक्षा भत्ता आदि।
संस्कृत में ‘भर्ता’ शब्द है, जो मूलतः भरण-पोषण
करने वाले के लिए प्रयोग होता रहा होगा, किन्तु अब पति (पूर्वांचल में ‘भतार’) के लिए
प्रायः रूढ़ हो चला है। दक्षिण में, विशेषतः तेलुगु में पत्नी के लिए ‘भार्या’ शब्द का प्रयोग
होता है। इसे भी भर्ता-भार्या के विशिष्ट सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए।
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