हट्टी और सट्टी तथा चन्दुआ और चनुआ

 

हट्टी और सट्टी तथा चन्दुआ और चनुआ

बनारस-स्थित काशी विद्यापीठ के सामने एक सब्जी-मण्डी लगती है। नाम है चन्दुआ की सट्टी। अधिक मात्रा में सब्जी खरीदने के इच्छुक बनारसी लोग यहीं आते हैं। मन में सहज ही सवाल उठता है- सट्टी क्या होती है? यह शब्द कहाँ से आया है?

पंजाबी में एक शब्द है हट्टी- यानी दुकान। दिल्ली में एक जुमला प्रसिद्ध है- महाशयां दी हट्टी। यानी महानुभावों की दुकान। हट्टी माने दुकान। बहुत-सारी अस्थायी दुकानें जहाँ लगती हैं उसे कहते हैं हाट। बाज़ार-हाट करने का सुप्रचलित मुहावरा हमें अच्छी तरह ज्ञात है। ध्वनि के और इसके विपरीततः  रूपान्तरण के अनेक उदाहरण देखने में आते हैं, जैसे सौ–हौ, सै-है। हट्टी शब्द में ह ध्वनि ही रूपान्तरित होकर स बनी होगी, जिसके फलस्वरूप हट्टी का सट्टी बना होगा।

अपना विरोध प्रकट करने अथवा किसी अन्य कारणवश कारोबार को कुछ समय के लिए बन्द करने की स्थिति को हड़ताल कहा जाता है। हड़ताल शब्द की व्युत्पत्ति हट्ट+ताल से मानी जाती है, यानी हट्ट/ हट्टी पर ताला लगाकर विरोध जताना।  

पूर्वोत्तर में ध्वनि भी के रूप में उच्चरित होती है। यही स्थिति तमिल भाषियों में भी दिखाई देती है। इसीलिए वे पाँच को पाँस और चाँद को साँद बोलते हैं।

चाँद शब्द में ध्वनि को के रूप में उच्चरित करने की एक आम प्रवृत्ति पूरे उत्तर भारत में दिखाई पड़ती है। इसीलिए चन्दुआ को बनारस के लोग चनुआ बोलते हैं। चन्द्रमा को चनरमा, बालचन्द्र को बालचन उच्चरित करने का आम रिवाज यहाँ और आसपास के इलाकों में दिखाई देता है। पश्चिम उत्तर प्रदेश और हरियाणा को छोड़ दें तो पंजाब में फिर यह प्रवृत्ति देखने में आती है, जहाँ लोग चाँद को चन्न या चन्नां कहते हैं।

शब्दों के ये लोकप्रचलित रूप निश्चय ही हमारी सभी भाषाओं के माधुर्य में वृद्धि करते हैं। बस ज़रूरत है तो इस रूप माधुरी को समझने और उसे आत्मसात करने की।

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