आखना, चालना और छानना
आखना, चालना और छानना
डॉ. रामवृक्ष सिंह, लखनऊ
किसी वस्तु जैसे
गेहूँ, चने, चावल आदि में से उसकी अपेक्षा छोटी अशुद्धि, कंकर आदि अलग करने के लिए
बड़े छेदों वाले एक घरेलू उपकरण (ढेर सारे छेद युक्त बर्तन) में ये वस्तु भर ली
जाती है। उसे धीरे-धीरे हिलाते हैं, जिससे उक्त उपकरण (छिद्रयुक्त बर्तन) की बारी
या किनारों से कुछ नहीं गिरता और अशुद्धि के छोटे कण छेदों से नीचे झड़ जाते हैं।
इस छिद्रयुक्त बर्तन/ उपकरण को आखा कहते हैं और अशुद्धता दूर करने की क्रिया को ‘आखना’। आखा कहने का कारण शायद यह
हो कि इस प्रक्रिया में साबुत, सुपुष्ट अनाज आदि बच रहते हैं और किनकी, टूटे हुए
टुकड़े तथा छोटे कंकर आदि नीचे गिरकर उससे अलग हो जाते हैं।
इसकी विपरीत
प्रक्रिया है चालना। चालने की प्रक्रिया में अशुद्धि को चलनी में रोक लिया जाता है
और शुद्ध वस्तु नीचे गिरती है। घरों में सबसे अधिक चाली जानेवाली वस्तु है आटा
यानी पिसान। गेहूँ को पीसने पर उसका छिलका प्रायः मोटे कणों के रूप में आटे में
मिला रह जाता है। इसे ही चोकर कहते हैं। कुछ प्रयोजनों, जैसे रोटी, लिट्टी आदि
बनाने के लिए तो चोकर-युक्त पिसान बहुत उपयुक्त रहता है। सच कहें तो वह पाचन में
भी मदद करता है और बहुत-से पोषक तत्व उसमें होते हैं। किन्तु कुछ प्रयोजनों, जैसे
पूड़ी बनाने के लिए तनिक बारीक पिसान की ज़रूरत होती है। ऐसी स्थिति में पिसान को
चालना पड़ता है। इसी प्रकार मकान बनवाते समय पलस्तर या चुनाई के लिए जो मसाला
तैयार होता है, उसमें कंकड़ नहीं होने चाहिए। उस समय भी बालू, लाल बालू/मौरंग आदि को चाल लिया जाता
है।
हालांकि चालने की
क्रिया को कुछ लोग छानना भी कहते हैं। किन्तु तरल पदार्थों में से अनुपयोज्य
पदार्थ को अलग करने के लिए की जानेवाली प्रक्रिया केवल ‘छानना’ कहलाती है। जैसे चाय तैयार
करने के बाद उसमें उबली हुई चाय-पत्ती हमारी प्याली में न आ जाए, इसके लिए चाय को
छननी से छान लिया जाता है। पानी, दूध आदि तरल पदार्थों में से अशुद्धि निकालने के
लिए उन्हें भी छाना जाता है।
उक्त तीनों क्रियाओं
के लिए प्रयुक्त उपकरण को क्रमशः आखा, चलना या चलनी और छननी कहा जाता है।
प्रसंगवश बता दें कि दूध दुहाते समय गायें मक्खी-मच्छर लगने के कारण या आदतन, अकसर अपने पिछली टाँगे इधर-उधर पटककर छटकती हैं। अगर दूध दुहनेवाला सावधान न रहे तो वह चोट भी खा जाता है और गाय के थन के नीचे रखा दूध भरा पात्र भी गाय की लात खाकर लुढ़क जाता है। ऐसी गायों के पिछले दोनों पैरों को मिलाकर एक रस्सी से बाँध दिया जाता है। इसे गाय छानना कहते हैं। ऐसा करने से गाय के पैर अधिक नहीं हिलते और दूध दुहने की प्रक्रिया निर्विघ्न संपन्न हो जाती है। छानना का एक अर्थ यह भी है और जिस रस्सी से गाय को छाना जाता है, उसे छनना कहते हैं।
छानना का प्रयोग कई बार प्रगाढ़ मित्रता और आनन्द मनाने के लिए भी होता है। मसलन, जब दो व्यक्तियों में खूब गहरी मित्रता चल रही हो तो कहते हैं कि दोनों में गहरी छन रही है। इसी प्रकार कोई व्यक्ति खूब सुखपूर्वक रह रहा हो तो कहते हैं कि आजकल तो खूब छान रहा है। इन दोनों अभिव्यक्तियों के अपने-अपने निहितार्थ हैं। संक्षेप में कहें तो दो व्यक्ति जब गहरे मित्र होते हैं तो साथ में पीते-खाते हैं। अपने यहाँ पारंपरिक रूप से जश्न के समय पीने की मद रही है भाँग, जो बादाम आदि पोषक मेवों के साथ पीसकर छानी और पी जाती है। लगता है कि दो व्यक्तियों की पारस्परिक मित्रता के संदर्भ में छनने का गूढ़ार्थ यही है। इसके विपरीत जब कोई गृहस्थ आदमी खूब आनन्द और सुखपूर्वक रहता है तो उसके यहाँ हलवा बनता है, घी गरम करके पूड़ियाँ छनती हैं। इसी सुख की व्यंजना करने के लिए छानना शब्द का प्रयोग होता है।
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