प्रेयोक्ति (यूफिज्म)

  

प्रेयोक्ति (यूफिज्म)

डॉ. रामवृक्ष सिंह

महाप्रबन्धक (हिन्दी), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, प्रधान कार्यालय, लखनऊ

फोन- 7905952129

हमारे यहाँ शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द यानी मुँह से उच्चरित सार्थक ध्वनि या ध्वनि-समूह। ब्रह्म यानी ऐसा तत्व जो अन्यान्य गुणों के साथ-साथ अजरता-अमरता का भाव लिए हुए है, और जिसने अपनी कारयित्री शक्ति माया के साथ मिलकर समस्त सृष्टि की रचना की है, जिसने इच्छा की कि मैं अकेला हूँ और अनेक रूपों में अपना विस्तार करना चाहता हूँ- एकोहं बहुस्यामः। जिस प्रकार विश्व में कोई तत्व समाप्त नहीं होता, केवल रूप बदल लेता है, उसी प्रकार शब्द भी एक बार उच्चरित होने के बाद अमर हो जाता है। इसीलिए हमारे मनीषियों ने कहा- अच्छा बोलो। सच बोलो, किन्तु अप्रिय सच न बोलो- सत्यं ब्रूयात्, प्रियं ब्रुयात्, न ब्रूयात् सत्यं अप्रियं।

मानव जीवन ऐसा नहीं कि अप्रिय कथन करने का कोई अवसर ही न आए। अनेक बार हमें अप्रिय कथन के लिए विवश होना पड़ता है, किन्तु हम अप्रिय कथन के लिए अच्छे शब्दों का चयन कर सकते हैं। कई बार हम बुरी बातों की कल्पना करते हैं, किन्तु उन्हें अपने मुख से उच्चरित करने से बचते हैं। यह प्रवृत्ति दुनिया के सभी समाजों में है। सदियों से माना जाता है कि यदि आप बुरे शब्द का उच्चारण नहीं करते तो उसके बुरे प्रभाव से भी अछूते रह सकते हैं। इसलिए बुरी या अप्रिय बात को भी हम अच्छे शब्दों में व्यक्त करते हैं। इसे अंग्रेजी में Euphemism और हिन्दी में प्रेयोक्ति या मंगलभाषित कहते हैं।

जीवन का सबसे अप्रिय प्रसंग है मृत्यु। कोई भी इसका उच्चारण नहीं करना चाहता। इसलिए किसी की मृत्यु होती है तो तरह-तरह के अच्छे शब्दों में उसका बखान करते हैं, जैसे उनका देहावसान हो गया, वे स्वर्ग सिधार गए, उनका स्वर्गवास हो गया, वे गोलोकवासी हो गये, वे राम को या अल्लाह को प्यारे हो गये, वे इंतकाल फरमा गये, आदि। इसी प्रकार जब हम घर से बाहर निकल रहे होते हैं तो यह नहीं कहते कि मैं जा रहा हूँ। बल्कि कहते हैं कि मैं जाकर आता हूँ। कोई-कोई लोग कहते हैं अभी आया। अंग्रेजी में भी कहते हैं आय विल बी बैक। तेलुगु में कहते हैं- नेनु वेल्लि वस्तानु (मैं जाकर आता हूँ)।

व्यवसायी लोग जब रात को दुकान के फाटक बंद करने लगते हैं तो यह कहना अशुभ मानते हैं कि मैं दुकान बंद कर रहा हूँ। इसके बजाय वे कहते हैं कि मैं दुकान बढ़ाने जा रहा हूँ। दुकान बंद करना यानी कारोबार समेटना, समाप्त करना, जबकि दुकान बढ़ाना यानी अगले दिन तक के लिए फाटक बंद करना।

गाँव में जब मिट्टी के तेल के दीपक या लालटेन जला करते थे तो सोने के पहले अँधेरा करने के लिए उन्हें बुझाना होता था। इससे ईँधन का अपव्यय भी रुकता था। लेकिन कोई यह नहीं कहता था कि दीया या लालटेन बुझा दो। सभी कहते थे- दीया घर कर दो।

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Comments

  1. बिहारी का दोहा है-
    जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गति सोय. बारे उजियारो करे, बढ़े अंधेरो होय. इस दोहे में बढ़े या बढ़ाना प्रेयोक्ति का प्रयोग हुआ है. दीया बढा़ना यानी बुझा देना.

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