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Showing posts from March, 2023

बकसुआ (वक्र सुआ- यानी- सेफ्टी पिन)

  बकसुआ- वक्र सुआ यानी सेफ्टी पिन डॉ. रामवृक्ष सिंह, महाप्रबन्धक (हिन्दी) भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, प्रधान कार्यालय, लखनऊ फोन- 7905952129   सन् 1969-70 में जब मैं दिल्ली पहुँचा, तब वह मुख्यतया पंजाबी-बहुत शहर हुआ करता था। उस समय दिल्ली में बोली जानेवाली हिन्दी में बहुत-से शब्द पंजाबी समाहित रहते थे। ये विभाजन के समय पाकिस्तान से आये पहली या दूसरी पीढ़ी के लोग थे। हमारी प्राथमिक शाला की कुछ शिक्षिकाएँ भी उन्हीं में से थीं। चूंकि वे लोग मूलतः पंजाबी भाषी थे, लेकिन औपचारिक जीवन में हिन्दी बोलते थे, इसलिए उनकी भाषा के बहुत-से शब्द भी हिन्दी में प्रचलन में आ रहे थे। उन्हीं में एक शब्द हुआ करता था- बकसुआ। बकसुआ पर्याय था सेफ्टी पिन का। पता नहीं हिन्दी में इसके समानान्तर कोई प्रतिशब्द कभी था या नहीं, किन्तु पंजाबी में तो था और उसके माध्यम से दिल्ली की हिन्दी में भी सेफ्टी पिन के लिए यह शब्द इस्तेमाल होता था। खांटी हिन्दी-भाषी समाज में सेफ्टी पिन को भी लोग पिन ही कहते थे (न कि सेफ्टी पिन), चाहे बाद में उसकी तफ्सील ही क्यों न बतानी पड़े, किन्तु पिन के अलावा कोई शब्द हिन्द...

काउडंग और कंडा!

  काउडंग और कंडा ! डॉ. रामवृक्ष सिंह, महाप्रबन्धक (हिन्दी) भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, प्रधान कार्यालय, लखनऊ फोन- 7905952129   एक मित्र मवेशियों के कच्चे, ताज़े गोबर और पथे हुए, सूखे गोबर यानी कंडे पर बात करते हुए, दोनों के लिए काउडंग शब्द का प्रयोग कर रहे थे, तभी मुझे यह सूझा कि अंग्रेजी के काउडंग और हिन्दी के कंडा शब्द में गहरे ध्वनि-साम्य के साथ-साथ अर्थ-साम्य भी है। वैसे बताते चलें कि पाथे हुए गोबर, यानी कंडे, उपले, चिपरी, गोहरे आदि को अंग्रेजी में डंग-केक भी कहते हैं। काउडंग से कंडा शब्द का विकास होने की संभावना अधिक लगती है, क्योंकि लोक-जीवन में अधिक लंबे और जटिल संरचना वाले शब्दों को उच्चारण की दृष्टि से सरल और संक्षिप्त बनाने की प्रवृत्ति रहती है। इसीलिए स्टेशन का टीसन बन गया और विश्वेश्वर का बिसेसर। ऐसे हजारों शब्दों की ही शृंखला का एक सदस्य लगता है काउडंग , जो केवल सरलता की दृष्टि से कंडा बन गया होगा। कालान्तर में उसका अर्थ-संकोच हुआ होगा और सूखे   हुए गोबर मात्र को कंडा कहा जाने लगा होगा, फिर चाहे वह गाय का हो या भैंस का (किन्तु किसी और जानवर का ...

संस्था और संस्थान

  संस्था और संस्थान (Institution and Institute) डॉ. रामवृक्ष सिंह, महाप्रबन्धक (हिन्दी), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, प्रधान कार्यालय, लखनऊ. फोन 7905952129 अनुवाद करते समय, प्रमादवश ज्यादातर अनुवादक अंग्रेजी के दो शब्दों institute और institution का अनुवाद कभी संस्था तो कभी संस्थान के रूप में कर देते हैं। यदि कोई उनसे पूछे कि दोनों में क्या अन्तर है, तो वे शायद ही बता पाएँ। अधिक संभावना इस बात की है कि वे कहेंगे कि दोनों एक ही तो हैं। इन दोनों शब्दों की व्युत्पत्ति में न जाकर केवल व्यवहार-सिद्धता के आधार पर विचार करें तो भी हम पाते हैं कि दोनों बहुत भिन्न अर्थों में इस्तेमाल होते हैं। अंग्रेजी बहुत-ही समृद्ध भाषा है और इसमें शब्दों की प्रचुरता है। अंग्रेजी में institute शब्द संज्ञा के रूप में इस्तेमाल होने पर किसी शैक्षिक अथवा अनुसंधान संस्थान का द्योतन कराता है, जबकि क्रिया के रूप में इसका अर्थ है- स्थापित करना। उदाहरण के लिए हम ढेरों शैक्षिक अथवा अनुसंधान-संस्थानों का नाम देख सकते हैं, जैसे- ·          Indian Institute of ...

प्रेयोक्ति (यूफिज्म)

    प्रेयोक्ति (यूफिज्म) डॉ. रामवृक्ष सिंह महाप्रबन्धक (हिन्दी), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, प्रधान कार्यालय, लखनऊ फोन- 7905952129 हमारे यहाँ शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द यानी मुँह से उच्चरित सार्थक ध्वनि या ध्वनि-समूह। ब्रह्म यानी ऐसा तत्व जो अन्यान्य गुणों के साथ-साथ अजरता-अमरता का भाव लिए हुए है, और जिसने अपनी कारयित्री शक्ति माया के साथ मिलकर समस्त सृष्टि की रचना की है, जिसने इच्छा की कि मैं अकेला हूँ और अनेक रूपों में अपना विस्तार करना चाहता हूँ- एकोहं बहुस्यामः। जिस प्रकार विश्व में कोई तत्व समाप्त नहीं होता, केवल रूप बदल लेता है, उसी प्रकार शब्द भी एक बार उच्चरित होने के बाद अमर हो जाता है। इसीलिए हमारे मनीषियों ने कहा- अच्छा बोलो। सच बोलो, किन्तु अप्रिय सच न बोलो- सत्यं ब्रूयात्, प्रियं ब्रुयात्, न ब्रूयात् सत्यं अप्रियं। मानव जीवन ऐसा नहीं कि अप्रिय कथन करने का कोई अवसर ही न आए। अनेक बार हमें अप्रिय कथन के लिए विवश होना पड़ता है, किन्तु हम अप्रिय कथन के लिए अच्छे शब्दों का चयन कर सकते हैं। कई बार हम बुरी बातों की कल्पना करते हैं, किन्तु उन्हें अपने मु...

डाक यानी पुकारना

  डाक यानी पुकार यानी ध्वनि डॉ. रामवृक्ष सिंह, महाप्रबन्धक (हिन्दी), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, लखनऊ, फोन- 7905952129   कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ ठाकुर का प्रसिद्ध गीत है- जदि तोर डाक शुने केऊ ना आशे, तॉबे एकला चॉलो रे। इस गीत में डाक शब्द का अर्थ है पुकार, आवाज लगाना। यदि तुम किसी को आवाज लगाकर बुलाओ और कोई तुम्हारी पुकार या आवाज सुनकर भी न आये, तो तुम अकेले ही चल दो। कबीलाई संस्कृतियों में लोग दूर से चिल्लाकर एक दूसरे के संदेशे देते-लेते थे। एक व्यक्ति चिल्लाकर संदेश सुनाता, दूर खड़ा व्यक्ति वह संदेश सुनता और पुनः दूसरी दिशा में चिल्लाकर उसे संप्रेषित करता। यह सिलसिला चलता जाता और कुछ ही देर में संदेशा दूर तक पहुँच जाता। यही थी डाक देकर, यानी पुकारकर संदेशा पहुँचाने की प्राचीन पद्धति। जब संदेशे लिखकर दिए जाने लगे तो भी नाम वही रहा, पद्धति बदल गई। संदेशे को किसी कागज या कपड़े, भोजपत्र आदि पर लिखकर, किसी नलकी में सहेजकर, या लिफाफे आदि में रखकर हरकारे को थमा दिया जाता। वह दौड़ता हुआ जाता और गंतव्य तक संदेशा पहुँचा आता। दूरी अधिक होती तो कई हाथों से गुजरता हुआ संदेशा अपन...

गड़ना और गढ़ना

  गड़ना और गढ़ना  डॉ. रामवृक्ष सिंह महाप्रबन्धक (हिन्दी) भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, लखनऊ फोन- 7905952129 किसी बड़ी वस्तु की सतह में छेद, गड्ढा आदि बनाकर, उससे अपेक्षाकृत छोटी वस्तु का उसमें धँस जाना गड़ना कहलाता है। गड़ने की कई दशाएं हो सकती हैं। यानी गड़ी हुई वस्तु का एक सिरा दृश्यमान भी हो सकता है और अदृश्य भी। जैसे सीताजी के पाँव में काँटा गड़ गया। हो सकता है काँटे का ऊपर वाला हिस्सा दिख रहा हो, जिसे कुरेदकर रामजी ने काँटा काढ़ दिया। हो सकता है काँटा सीताजी के पाँव की चमड़ी के अंदर छिप गया रहा हो और उसे बाहर निकालने के लिए रामजी को बबूल या किसी अन्य नुकीले काँटे की नोक से कुरेदना पडा हो। कई बार लोग किसी हवेली, मकान, महल, किले, कोट आदि के फर्श में, मोटी दीवार आदि में खजाना गड़ा होने की किंवदंतियाँ कहते-सुनते पाए जाते हैं। किसी-किसी को नींव की खुदाई करते समय गड़ा हुआ धन हाथ लगने की बातें भी सुनने में आती हैं। कुछ लोगों में मुर्दे गाड़े यानी दफ्न किए जाते हैं। भाव है छिपाने का, दृष्टि से ओझल रखने का। इसी अर्थ-साम्य के आधार पर गड़े हुए धन को दफ़ीना भी कहा जाता है। जब श...