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Showing posts from July, 2023

धान, चावल, अन्नमु और भात

  धान, चावल, अन्नमु और भात डॉ. रामवृक्ष सिंह भारत ग्लोब के उस हिस्से का देश है, जहाँ वर्ष-पर्यन्त (दक्षिण में) अथवा वर्ष के चार-पाँच महीने (उत्तर में) इतनी गरमी और उमस रहती है कि उसमें धान की पर्याप्त खेती हो पाती है। धान हमारी संस्कृति के सबसे प्राचीन खाद्यान्नों में से एक है। सिन्धु घाटी सभ्यता के मृद्भाण्डों में चावल मिला है। इससे सिद्ध होता है कि उस समय चावल यहाँ के मूल निवासियों के भोजन का अभिन्न अंग हुआ करता है। हमारे धार्मिक अनुष्ठानों, जीवन से जुड़े विभिन्न संस्कारों आदि में चावल का प्रयोग कभी अक्षत के रूप में तो कभी दूल्हा-दुल्हन द्वारा अंजुरी भरने या खोंचा बाँधने के लिए किया जाता है। चावल की इतनी गहन सांस्कृतिक सम्पृक्ति यह सिद्ध करती है कि भारत की कृषि-बहुला जीवनधारा में इसका बहुत-ही महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। दक्षिण भारत की जलवायु धान उगाने के लिए वर्षपर्यन्त बहुत अनुकूल रहती है। इसलिए वहाँ धान की तीन-तीन फसलें भी ले ली जाती हैं। इसके विपरीत उत्तर में यह केवल खरीफ़ यानी बरसात के उमस भरे मौसम की फसल है। दक्षिण का प्रधान खाद्यान्न धान है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि आन्...

नाथना, नांधना और नांद

  नाथना ,  नाँधना और नाँद डॉ. रामवृक्ष सिंह ,  लखनऊ मोबा- 7905952129. 8090752129   पहली बात तो यह है कि नाथना और नाँधना ,  दोनों पृथक शब्द हैं। ऐसा नहीं कि  ‘ नाँधना ’  शब्द  ‘ नाथना ’  के बदले भूलवश लिखा गया है। एक कहावत है न आगे नाथ न पीछे पगहा। अगर इसका यही रूप है तो तथ्यतः त्रुटिपूर्ण है। नाथ भी आगे ही होता है और पगहा भी आगे ही। बस नाथ का संबंध नथुने ,  नासिका या नाक से है ,  जबकि पगहा का संबंध पशु के गले में बंधी उस लंबी रस्सी से ,  जिसका दूसरा सिरे खुंटे या किसी स्थिर आलंब से बंधा रहता है। नाथ से पशु पूरी तरह नियंत्रण में आ जाता है ,  जबकि पगहे के ज़रिए वह एक ठीहे पर बँधा रहता है। नाथ और नथ- एक ही मूल शब्द के दो रूप हैं। महिलाओं का पारंपरिक गहना है नथ ,  नथुनी या नथिया। यह गोलाकार आभूषण नाक की बाहरी माँसल त्वचा को छेदकर पहना जाता है। कुछ विद्वान इसका भी एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य बताते हैं। कई सदी पहले एक राज्य विशेष के आक्रान्ता जब किसी अन्य राज्य पर आक्रमण करके उसे जीत लेते थे तो अन्य धन-सम्पदा के साथ-साथ वहाँ क...