दौड़, परिगेत्तुलु, रन, किल्ली, गिल्ली, गेंद और बल्ला डॉ. रामवृक्ष सिंह, लखनऊ यह सभी शब्द एक ही खेल से संबंधित हैं, जिसे हम ‘ क्रिकेट ’ के नाम से जानते हैं। कभी हॉकी हमारे देश का राष्ट्रीय खेल हुआ करता था। किताबों और अभिलेखों में शायद अब भी हो। किन्तु हमारे बचपन में यानी साठ-सत्तर के दशक में हॉकी का जैसा चाव बच्चों और युवाओं में दिखता था, वैसा तो क्या, उसका दो प्रतिशत भी अब कहीं नहीं दिखता। गाँवों में उससे भी कहीं अधिक चाव कबड्डी का हुआ करता था। स्कूल जाते-आते बच्चे कहीं भी बस्ता पटक कर कबड्डी खेल लिया करते थे। उसके लिए किसी साजो-सामान की ज़रूरत न थी। बस डेढ़ बिस्वे का सपाट मैदान ही काफी हुआ करता था। और आबालवृद्ध किसी भी भारतीय को भारत माँ की मिट्टी में लोटपोट होने से कोई गुरेज़ न था। आज स्थिति बिलकुल बदल चुकी है। अब जो ...
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मलाई या मलय ? डॉ. रामवृक्ष सिंह, लखनऊ हिन्दी और इतर भारतीय भाषाओं के शब्दों को लिपिबद्ध करने की जैसी क्षमता भारतीय लिपियों में है, रोमन लिपि में वैसी सुविधा और क्षमता नहीं है। इसका ज्वलन्त उदाहरण है उपर्युक्त शब्द- मलाई। यह शब्द सेन्गोल (ब्रह्मदण्ड या राजदण्ड) के साथ आज निरन्तर चर्चा में है। तमिलनाडु से आये सेन्गोल (या सेंगोल) को भारत के नई दिल्ली-स्थित, नव-निर्मित संसद-भवन में स्थापित किया जाएगा। उससे पहले आज नई दिल्ली के आर.के. पुरम (रामकृष्ण पुरम) के सेक्टर-सात स्थित मलय मन्दिर में उसकी विधिवत पूजा-अर्चना की गई, या यों कहें कि संसद-भवन में, सभापति की आसंदी के बगल में स्थापित किए जाने का पूर्वाभ्यास किया गया। नई दिल्ली के दक्षिणी हिस्से में रहनेवाले नागरिक जानते हैं कि रामकृष्ण पुरम के सेक्टर -7 और सेक्टर -6 के मध्य एक नाला बहता है (या उन दिनों बहा करता था, जब हम वहाँ जाते-आते थे)। उस नाले के किनारे वसन्त विहार की ओर से हौज़ खास की ओर जानेवाली सड़क से लगभग सटकर एक ऊँचा भू-भाग है, जिसपर तमिल समाज का हिन्दू मन्दिर निर्मित है। उक्त नाले के साथ-साथ, सेक्टर-6 से सटे हिस्से में...